ये तुम्हारे मंदिर है झूठे
तुम्हारे भगवान् झूठे..
कांच के बने
ये तुम्हारे इंसान है झूठे..
ये खानाबदोश बेचैन रात दिन
पागलों की तरह दौड़ते और भागते
जिन्दा लाशों से भरे
बदस्तूर खून चूसते
इन बड़े बड़े शहरों पे बसे
ये मुर्दा कब्रिस्तान है झूठे
ये तुम्हारे मंदिर है झूठे….
ये धूल चढ़ी बंद किताबें
ये जंग खाते सढे गले कायदे
और उन्हें अंधों की तरह ढ़ोते
पढ़े लिखे समझदार नौजवान कंधे
ये सदियों पुरानी बास मारती
बदबूदार इबादतों की दूकानों में रखे
साफ़ सुन्दर ललचाते
रंग बिरंगे सामान है झूठे
ये तुम्हारे मंदिर है झूठे….
झूठा मै खुद यहाँ
झूठों की बस्ती मैं
इक नाम तू ही बस सच्चा मौला
बच्चा बन तुझे ढूँढ रहा मैं
नाम कबीरा हाथ में झोला
कहीं दिख जाए तो गले लगा लूँ
मिल जाए तो खुद को मिटा दूँ
अँधेरे में भटक रहे यहाँ
बाकी तो सब नाम है झूठे
ये तुम्हारे मंदिर है झूठे….